About

मेरे लिए लिखना काम नही है…😇 ‘पेशे से इंजीनियर हूँ दिमाग से हैकर हूँ और दिल से लेखक हूँ’ यह हुआ मेरा छोटा सा परिचय। भला आप मुझमें क्यों रूचि लेंगे, मै कौन-सा नामचीन लेखक या कोई बहुत बड़ा इंजिनियर हूँ ! न ही मेरे लिखे किसी लेख ने क्रांति की, न ही फेसबुक पर वायरल हुआ। मेरा काम प्रोग्रामिंग करना है, पर दिमाग एथिकल हैकिंग में ज्यादा लगता है। अपने काम से जो थोड़ा वक़्त मिल जाता है, उसमें मै ऑपरेटिंग सिस्टम, वेबसाइट की कमियां निकालकर उन्हें मजबूत करता हूँ। इस सब में पूरा दिन निकल जाता है। कभी-कभी देर रात को फ्री होता हूँ। पर बिस्तर पर तब तक नींद नहीं आती,जब तक कुछ लिख न लूं। पता नहीं ये लिखने-पढने का शौक कब और कैसे आया। कितना भी थका रहूं, सोने से पहले कुछ लिखूं-पढूं नहीं तब तक मुझे चैन नहीं आता। दोस्त कहते हैं भाई, तुम लेखक ही क्यों नहीं बन गए। दोस्तों, मैंने लेखन को पेशा नहीं बनाया क्योंकि मुझे यह कभी काम लगा ही नहीं। यह तो मेरा जुनून हैं पर मैं दिल से लिखता हूँ। किसी ने मुझसे कहा था, ‘कुछ करते हुए अगर तुम्हें उसमें मज़ा आने लगे, वह बोझ न लगे, घंटे उसमें डूबकर जुटे रहो, तो वह तुम्हारा जुनून हैं…। कई बार ख़ुद अपना ही लिखा पढकर उछल पड़ता हूँ, कोई सुनने वाला नही होता तो ख़ुद को ही सुनाता हूँ और हंसता हूँ, कभी भावुक भी हो जाता हूँ। मेरे हमउम्र साथी हमेशा असमंजस में होते हैं। क्या करें, किसमें ख़ुशी मिलेगी, जिंदगी का मकसद क्या हैं, वगैरह-वगैरह…। चूँकि मैं थोड़ा-बहुत पढ़ता हूँ, तो विद्वानों की कही बात को दोहरा रहा हूँ- जुनून का पता लगाना आसान है। आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे करने में हर क्षण उत्साहित और उर्जावान महसूस करते हों, तो यही आपका जुनून हैं…। ज़रूरी नहीं कि प्रोग्राम बनाना मुझे काम लगता है, तो आपको भी लगे। हो सकता है आपको मशीनों से प्यार हो, सिविल इंजिनियर हों और डिज़ाइन पर घंटो मेहनत कर सकते हों, शिक्षक हों और बिना रुके छह घंटे की क्लास भी ले सकते हों। क्या फ़ोटो खींचना या प्रक्रति की गोद में बैठना आपको भाता हैं? क्या भंवरों, तितलियों से बातें करते हैं…या मेरी तरह कहीं से भी किताबें, पत्रिकाएं इकटठा कर पढ़ने का शौक है? यह सब किसी को काम लग सकता है, तो किसी के लिए जीने का मकसद हो सकता है। हमें अपने काम और जुनून ही न हो। एक और बात, आप जो भी काम कर रहे हों, उसको जीना सीखें, क्योंकि अगर परिणाम ही आपको ख़ुशी देने वाला है तो फिर सोचने की ज़रूरत है। सोचिए, और जीना शुरू कर दीजिए…चलिए तब तक मैं किसी सिस्टम की ग़लती सुधरता हूँ।

-महेन्द्र सिंह सोलंकी (केविन)